कहानी एक दिन की
दिनकर का हाथ बढ़ा
उजियारा दिवस चढ़ा
अंतर में हुलस उठी
दिल पर ज्यों फूल कढ़ा !
अपराह्न की बेला
किरणों का शुभ मेला
पढ़कर घर लौट रहे
बच्चों का है रेला !
सुरमई यह शाम है
तुम्हरे ही नाम है
अधरों पर गीत सजा
दूजा क्या काम है !
बिखरी है चाँदनी
गूंजे है रागिनी
पलकों में बीत रही
अद्भुत यह यामिनी !
अनिता निहालानी
११ अक्तूबर २०१०
पलकों में बीत रही
जवाब देंहटाएंअद्भुत यह यामिनी !
बहुत खूब ... प्रकृति को जीवंत कर दिया है.
वाह..!
जवाब देंहटाएं..कितना मुश्किल है एक प्यारा गीत लिखना और कितना आसान है हंसते हुए उसे गुनगुना देना।