बुधवार, अक्तूबर 27

कहाँ खो गयी

कहाँ खो गयी

कहाँ खो गयी

लुप्त हो गयी

प्रेम बाँसुरी की धुन प्यारी !


चैन ले गया

वैन दे गया

गोकुल का छलिया गिरधारी !


देने में सुख

चाह ही दुःख

सीख दे रही हर फुलवारी !


मौन हुआ मन

अविचल स्थिर तन

बरसी भीतर रस पिचकारी !


अगन विरह की

तपन हृदय की

जल जाये हर भूल हमारी !


अनिता निहालानी
२७ अक्तूबर २०१०  

6 टिप्‍पणियां:

  1. कहाँ खो गयी लुप्त हो गयी प्रेम की वंशी की धुन प्यारी |

    SACH ME PATA NAHI KAHA GALI WO BANSI KI PYARI DHUN.

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  2. वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब

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  3. चैन ले गया
    वैन दे गया
    गोकुल का छलिया गिरधारी


    सुमधुर!!!

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  4. अनीता जी,

    मेरे ब्लॉग जज़्बात....दिल से दिल तक....... पर मेरी नई पोस्ट जो आपके ज़िक्र से रोशन है....समय मिले तो ज़रूर पढिये.......गुज़ारिश है |

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  5. मौन हुआ मन
    है स्थिर तन
    बरसी भीतर रस पिचकारीI

    ..इस दर्शन ने बड़े-बड़े लेखकों, चिंतकों को प्रभावित किया है।
    ..पढ़कर सुख की अनुभूति हुई।

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