सच के फूलों की फसल
कागज पर उतरते हैं शब्द
साथ चली आती है
नामालूम सी उदासी की लहर
उपजी है जो भीतर
किसी गहरे अंतराय से !
सत्य के पक्ष में खड़े होना हो तो
इसे अपना साथी बना लो,
बार-बार सहनी होगी यह चुभन
काँटे जो बिछे हैं
सच की राह में मीलों तक !
माना कि ऊपर नीला गगन है
और पगडंडी के किनारे-किनारे
उगे फूलों की सुवास
सहला जाती है,
और समन्दर है भीतर
जो बहा ले जायेगा पथ के कंटक !
लेकिन कोई एक कांटा
फिर उभर आयेगा
होना है हमें शुक्रगुजार जिसका,
जो पता देता है भीतर
किसी अंतराय का
कांटा तो एक बहाना है
निजात तो उससे पाना है
छिपा है जो सागर के तल से
गुजरती सुरंग में !
कांटा निकाल लाएगा
उस दानव को बाहर
दानव जो छिपा है भीतर
जब-जब उठाता है सर
बिंध जाता है मन
उसके नुकीले नखों से!
हर बाहर प्रतिबिम्ब है भीतर का !
पथ के काँटे ही बन जाते
प्रकाश स्त्रोत, दिखाते गड्ढे
पाटना है जिन्हें सुनहले सागर से
तब उतरेंगे शब्द कागज पे
और साथ चली आयेगी लहर तृप्ति की !
जब तक न घटे यह घटना
शुक्रगुजार होते रहना है
पथ के काँटों का, सबब हैं जो
सच के फूलों की फसल के !
अनिता निहालानी
२४ मार्च २०११
बहुत खूबसूरत भाव लिए हुए सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंसत्य के पक्ष में खड़े होना हो तो
जवाब देंहटाएंइसे अपना साथी बना लो,
बार-बार सहनी होगी यह चुभन
काँटे जो बिछे हैं
सच की राह में मीलों तक !
बहुत सुन्दर बात ...अच्छी रचना
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंहैट्स ऑफ .....इस पोस्ट के लिए.....विशेष इन पंक्तियों के लिए -
सत्य के पक्ष में खड़े होना हो तो
इसे अपना साथी बना लो,
बार-बार सहनी होगी यह चुभन
काँटे जो बिछे हैं
सच की राह में मीलों तक !