हर कोई चाहे कुछ होना
मैं भी ‘कुछ’ हूँ, तुम भी ‘कुछ’ हो
यह भी ‘कुछ’ है, वह भी ‘कुछ’ है,
हर कोई चाहे ‘कुछ’ होना
यही तो है दुनिया का रोना !
‘कुछ कुछ’ जोड़ दिलों को तोड़ा
भानमती ने कुनबा जोड़ा,
तज मूल्यों को माया चाही
हर्षद, राजा या मधु कोड़ा !
लेकिन ‘कुछ’ भी न हो पाए
व्यर्थ ही सारा श्रम बह जाये,
माया मिले न राम किसी को
मिलने का बस भ्रम रह जाये !
‘कुछ’ होने का जब भ्रम छूटे
शून्य रूप जब अपना जाने,
‘कुछ कुछ’ से ‘सब कुछ’ हो सकता
स्वयं की असलियत पहचाने !
अनिता निहालानी
७ मार्च २०११
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.....ये पंक्तियाँ बहुत ही पसंद आयीं -
माया मिले न राम किसी को
मिलने का बस भ्रम रह जाये !
‘कुछ कुछ’ से ‘सब कुछ’ हो सकता
स्वयं की असलियत पहचाने !
सटीक बात कही ...मैं कुछ हूँ ...यही रोना सबको सताता है ..
जवाब देंहटाएंस्वयं कि असलियत ही पहचान ली तो कुछ भी पचानाने के लिए शेष नहीं रह जायेगा.
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंजज़्बात पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया......नाराज़ होने की कोई बात नहीं....आप जो चाहें पूँछ सकती है.......इंशाल्लाह आपको सच्चा और नेक जवाब मिलेगा......