शुक्रवार, फ़रवरी 24

देखो कोई ताक रहा है


देखो  ! कोई ताक रहा है


सम्मुख आने से घबराए

आहट भर से झट छुप जाए,

उर के भीतर से ही देखे

चुपके-चुपके झांक रहा है !


देखो  ! कोई ताक रहा है


पर्दे के पीछे वह रहता

सारी नादानी को सहता,

पल-पल छिन-छिन गुपचुप निशदिन

चलता उसका चाक रहा है !


देखो  ! कोई ताक रहा है


लुका छिपी का खेल चल रहा

यूँ हर पल ही मेल हो रहा,

दर्पण यह मन बन ना जाए 

तब तक जीवन खाक रहा है !


देखो  ! कोई ताक रहा है


दृश्य वही द्रष्टा भी वह है

फिर भी पटल  मध्य में डाला,

कैसा खेल रचाया माधव

अनुपम, अद्भुत आंक रहा है !


देखो  ! कोई ताक रहा है

 

प्रेम धार जब दिल में बहती

तब सारे पर्दे गिर जाते,

प्रकट हुआ वह छिप न सके तब

प्रेमी-प्रियतम आप रहा है !


देखो ! कोई ताक रहा है


जब प्रियतम भी खो जाता है

शेष प्रेम ही प्रेम रहे उर, 

न प्याला न मधु ही बचता, बस 

मदहोशी का आक रहा है !

 

देखो  ! कोई ताक रहा है





14 टिप्‍पणियां:

  1. जैसे परम-पिता के दर्शन, करे आत्मा पावन ।

    वैसे लुकाछिपी शिशु खेले, माँ के संग मनभावन ।।


    दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
    http://dineshkidillagi.blogspot.in

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  2. जब प्रियतम भी खो जाता है
    प्रेम ही प्रेम बचा रहता
    न प्याला न मधु ही बचे
    बस मदहोशी का आक रहा है

    देखो कोई ताक रहा है
    मुझमे कोई झांक रहा है…………शानदार प्रस्तुति।

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  3. प्रेम धार जब दिल में बहती
    तब सारे पर्दे गिर जाते
    प्रकट हुआ वह छिप न सके तब
    प्रेमी-प्रियतम आप रहा है
    देखो कोई ताक रहा है

    bahut sundar rachna anita ji --------aabhar

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  4. वाह!!!!!
    दृश्य वही द्रष्टा भी वह है
    फिर भी पर्दा मध्य में डाला
    कैसा खेल रचाया माधव
    अनुपम, अद्भुत पाक रहा है

    बहुत बहुत खूबसूरत रचना अनीता जी...
    सचमुच लाजवाब...

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  5. पर्दे के पीछे वह रहता
    सारी नादानी को सहता
    पल-पल छिन-छिन गुपचुप निशदिन
    चलता उसका चाक रहा है

    देखो कोई ताक रहा है

    ....सच है..उससे क्या छुपा है...बहुत सुंदर रचना..

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  6. ख़ुदी से बेखुदी तक ले जाती है आपकी सुन्दर रचना..

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  7. बेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने..... सार्थक अभिवयक्ति......

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  8. प्रेम धार जब दिल में बहती
    तब सारे पर्दे गिर जाते
    प्रकट हुआ वह छिप न सके तब
    प्रेमी-प्रियतम आप रहा है
    देखो कोई ताक रहा है....

    सारे शब्द छिन गए जैसे......
    क्या कहूँ.....!!!

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  9. जब प्रियतम भी खो जाता है
    प्रेम ही प्रेम बचा रहता
    न प्याला न मधु ही बचे
    बस मदहोशी का आक रहा है

    बहुत ही सुन्दर है कविता.....शानदार, लाजवाब।

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  10. बहूत हि सुंदर रचना है
    बहूत बढीया प्रस्तुती...

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  11. आप सभी सुधी पाठकों का स्वागत व आभार!

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