अग्नि ही उनका सखा है
रह-रह कर कंपकंपाते
शीत में तन सिकुड़ जाते,
पात भी कुछ पीत होकर
सर्दियों में थरथराते !
दूब जो पहले हरी थी
सूखती सी रंगी भूरी,
दिन हुआ छोटा सा देखो
शाम से ही रात उतरी !
ओढ़ कंबल ताप सेंकें
बाल, बूढ़े उस सड़क पर
अग्नि ही उनका सखा है
नहीं हीटर और गीजर !
सुबह सूरज भी संवरता
पहन कर पाले का स्वेटर,
हवा तुम विश्राम ले लो
भाव यह होता मुखर !
सर्दियों की भोर अनुपम
दोपहर बैठक सजाती,
स्वेटरों के रंग खिलते
मूंगफली की दाल गलती !
थी गुलाबी सर्दियाँ जो
आज यौवन पा गयी हैं,
घन कोहरे के कारण
फिर उड़ानें रद हुई हैं !
सही कहा अनीता जी गरीब की साथी तो आग ही है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति...... .
जवाब देंहटाएंसच में बहुत ठण्ड है इन दिनों :)
जवाब देंहटाएंवाकई !
हटाएंनए-नए बिम्बों से सजया है अपने इस सरदी को।
जवाब देंहटाएंआभार मनोज जी !
हटाएंजाड़े का सुन्दर दृश्यात्मक वर्णन.....
जवाब देंहटाएंइमरान, शरद जी, सुषमा जी, कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंरविकर जी, बहुत बहुत आभार !
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन माहौल रचा है इस रचना ने परिवेश से संवाद करती है यह रचना और आपकी हरेक पोस्ट .नव वर्ष शुभ हो 24x7x365
एक तरफ सर्दियों की ठंडक का अहसास तो दूसरी तरफ गरीबों की बेबसी की झलक दिखाती सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएं♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
रह-रह कर कंपकंपाते
शीत में तन सिकुड़ जाते,
पात भी कुछ पीत होकर
सर्दियों में थरथराते !
सर्दी यहां भी बहुत तेज़ है पारा शून्य से अंदर है अभी ...
आदरणीया अनिता जी
आपने सर्दी में बेघर बेआसरा लोगों या जिन्हें घर से बाहर काम करने को विवश लोगों की हालत का चित्रण किया है ...
गरीबों की सुनो , वो तुम्हारी सुनेगा ...
:)
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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इस कविता में एक-एक बिम्ब खुद ही उभर कर अपना हाल कह उठे हैं . उड़ानें रद्द हो रही हैं आदि-आदि..बहुत ही सुन्दर लगी .
जवाब देंहटाएंसर्दियों का अपना मज़ा है लेकिन गरीबों के लिये यह जीवन का सबसे मुश्किल समय होता है.
जवाब देंहटाएंयही है सर्दी के, चतुर्दिक बिखरे असली रंग !
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