स्वयं में भी जीवन उगता है
सबको खुश करते करते ही
हँसना हम स्वयं भूल गए,
सबको अपने पास किया था
खुद से ही दूर निकल गए !
भय ही एक सूत्र में बांधे
प्रेम कहाँ दीखे जग में,
मिले अभय जब थामें खुद को
फूल झरा करते मग में !
जो स्वभाव में टिकना सीखे
वही खुशी को पा सकता है,
जिसने खुद को पाया खुद में
वही खुदा तक जा सकता है !
नजर हटे जब अन्यों से तो
स्वयं में भी जीवन उगता है,
भीतर एक उजाला भरता
निर्झर कोई झर-झरता है !
क़ुरबानी के नाम पे अक्सर
दर्द दिया खुद को हमने,
इसी दर्द को बांटा जग में
फिर क्यों उठे शिकायत मन में !
जो आनंद से भर जाता है
वही सुगंध बिखेरे जग में,
वही वृक्ष छाया दे सकता
जो भर जाता है खुद में !
पहले खुद को प्रेम से भर लें
शेष सहज ही सब घटता है,
न भीतर कुछ हानि होती
बल्कि हर सुख बढता है !
सबको खुश करते करते ही
जवाब देंहटाएंहँसना हम स्वयं भूल गए,
सबको अपने पास किया था
खुद से ही दूर निकल गए !
mai swyam se judi manti hu in panktiyon ko
संध्या जी, इन पंक्तियों को आप स्वयं से जोड़ पाती हैं, अच्छा लगा यह जानकर, आपका स्वागत है,आभार!
हटाएंजो आनंद से भर जाता है
जवाब देंहटाएंवही सुगंध बिखेरे जग में,
वही वृक्ष छाया दे सकता
जो भर जाता है खुद में !
बहुत सुन्दर भाव... आभार
आभार संध्या जी !
हटाएंक़ुरबानी के नाम पे अक्सर
जवाब देंहटाएंदर्द दिया खुद को हमने,
इसी दर्द को बांटा जग में
फिर क्यों उठे शिकायत मन में !
बहुत बहुत सुन्दर ।
शुक्रिया, इमरान !
हटाएंजो स्वभाव में टिकना सीखे
जवाब देंहटाएंवही खुशी को पा सकता है,
जिसने खुद को पाया खुद में
वही खुदा तक जा सकता है !
बहुत सुंदर और गहन विचार ...
संगीता जी, शुक्रिया !
हटाएंपीड़ाओं को सुंदर प्रवाह मिल गया, वाह !!!!
जवाब देंहटाएंअरुण जी, सुस्वागतम!
हटाएंबहुत खूबसूरत भाव!
जवाब देंहटाएंपहले खुद को टोह लें, पा लें... तो सारे द्वार खुद-ब-खुद जाएँगे!
(एक बात पूछना चाहेंगे अनिता जी ...- ' ये फूल (चित्र में) क्या 'कौरव-पांडव' है ?' (पहले हमारे घर में लगा था, हमें बहुत पसंद था! इसी से पूछा...) :-)
~सादर!!!
मीता, मैंने भी सुना तो है कुछ ऐसा ही नाम वैसे इसे पैशन फ्लावर भी कहते हैं शायद..
हटाएंआभार संगीता जी !
जवाब देंहटाएंअहा ! कितनी सुन्दर बातें हैं ..सही में हम खुद को भूल जाते हैं..
जवाब देंहटाएंkhubsurat bhav...खूबसूरत भाव
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