पौष का एक दिन
हुआ प्रातः, पर रात अड़ी है
जाने का यह नाम न लेती,
घना कोहरा, ढका गगन व
ठिठुरन तन को अकड़ा देती !
आज गगन का राजा भी तो
दुबका हुआ कहीं छुपा है,
बादल डाले डेरा नभ में
ठंड में दोहरा वार किया है !!
ऊपर से यह शीत लहर भी
जाने हवा कहाँ से आती,
निकट कहीं पर बर्फ गिरी है
उसके दे संदेशे जाती !
आग, धूप अब मित्र बनी हैं
गुड, रेवड़ियाँ बड़ी सोहतीं,
ठंडी शामें सिहरा जातीं
बस रजाई की बाट जोहतीं !
लिये कांगडी अगन तापते
कोई लाकड़ ढेर जलाते,
ढेरों कपड़े लादे तन पे
पूस की ठंड को दूर भगाते !
thandh ka aanand aag ke paas hi milta hai......bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंलोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीर......शानदार कविता।
जवाब देंहटाएं