एक दिन अचानक
सुना तो था उसने
सबसे प्रेम करो
पर दिल का दरवाजा था कि
खुलता ही नहीं था सबके लिए....
जंग लग गयी सिटकनी में या
जम गयी थी धूल-मिट्टी दरारों में
पर सुनना जारी रहा तो एक दिन अचानक...
टूट गयी दीवारें दरवाजे सहित !
और एक लहर सी दौड़ती आई
जो अवरुद्ध थी भीतर
हरियाली छा गयी मन उपवन में
उठने लगे सुरभि के बगूले
जो सामने आया बच न पाया उसकी गिरफ्त से
श्वास लेना भी तब दे रहा था स्वर्गिक आनन्द
मुस्कुराहट को पसंद आ गया था उसका मुखड़ा
ईश्वर तब संगी साथी बन गया था और वह सहज ही एक ऊर्जा
जिसमें झलक जाती है हल्की सी भी कालिमा
ऐसा श्वेतकमल सा पारदर्शी हो गया था मन उसका
पल भर में सिलवट संवर जाती है ज्यों
ऐसे ही स्वच्छ हो जाता था
फूल की चोट खाकर आहत हुआ हो ज्यों कोई जलाशय
सारी दुनिया अपना विस्तार नजर आने लगी थी
मिट गये थे सारे भेद
छिन्न भिन्न हो जाते हैं ज्यों बादल बरसते ही...
प्रेम तब करना नहीं था
उसने जाना वह प्रेम ही था....
बहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएंपारदर्शी मन लिए प्रेम का मूर्त रूप हो जाना...
जवाब देंहटाएंसबके साथ घटित हो ऐसा!
अनुपमा जी, हो तो सकता है ऐसा यदि कोई दिल से चाहे....
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंआभार आपका -
,बहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
latest दिल के टुकड़े
प्रेम का ऐसा उदात्त रूप ही हमारे यहाँ मान्य है । लेकिन अब प्रेम का अर्थ ही बदल गया है ।
जवाब देंहटाएंआभार गिरिजा जी, प्रेम का अर्थ बदल गया हो पर प्रेम का तत्व तो वही रहेगा..
हटाएंसच्चा प्रेम तो ऐसा ही होता है..अति सुन्दर कहा है..
जवाब देंहटाएंप्रेम है तो सच्चा ही है नहीं है तो उसे कोई भी नाम दें...अनुभव में नहीं आयेगा...
हटाएंप्रेम ही प्रेम.........ये दरवाज़ा बड़ी मुश्किल से खुलता है परन्तु जब खुल जाता है तो समस्त संसार इसमें समां जाता है........इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हैट्स ऑफ ।
जवाब देंहटाएंईश्वर तब संगी साथी बन गया था और वह सहज ही एक ऊर्जा
जवाब देंहटाएंजिसमें झलक जाती है हल्की सी भी कालिमा
ऐसा श्वेतकमल सा पारदर्शी हो गया था मन उसका
बढ़िया बिम्ब विस्तार
संगीता जी, अनु जी, रविकर जी, कालीपद जी व वन्दना जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंप्रेम को खूबसूरती से परिभाषित करती रचना।
जवाब देंहटाएंआभार, देवेन्द्र जी
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