सोमवार, जुलाई 29

स्मृति का देवदूत


स्मृति का देवदूत

याद के घट में प्रीत की नमी
भरके जब दिल के करीब लाई ही थी वह
क्षण भर भी नही लगा 
बादल छा गये अंतर आकाश पर
ऐसा खामोश अंधड़ उठा भीतर
चुप्पी की गर्जना हुई
दामिनी दमकी टीस सी
और तभी कूकने लगी कोयल सी धारा
नृत्य जगा शांत कदमों में
हँसी जो बाहर नहीं सुनी किसी ने
पर गूंज उठा अंतर उपवन
कोलाहल बहुत था
उमड़ती भाव रश्मियों का
स्पंदनो और कम्पनों का
अनसुना नहीं रहा होगा किसी के तो कानों से
दूत बन कर जो आया था स्मृति का
ठगा सा तकता रहा निर्निमेष !


14 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ुशी स्मृति में दौड़ी चली आई होगी !

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  2. यशोदा जी, स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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  3. मन के भावों को प्रकृति के बिम्ब से बहुत खूबसूरती से उकेरा है ...

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  4. वाह अद्भुत भावों से भरी रचना

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  5. वाह अद्भुत अहसास...रचना के भाव अंतस को छू गए...आभार

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  6. बहुत सुन्दर हर शब्द अर्थ गर्भित भाव संसिक्त शैली अपना मार्दव लिए है भाषिक सौन्दर्य भी देखते ही बनता है।

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  7. वीरू भाई, देवेन्द्र जी, कैलाश जी, वन्दना जी, कविता जी तथा संगीता जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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