नया जब दिन उगा
नूतन उच्छ्वास भरें
श्वासों में हर्ष के,
नया सा दिन उगा
वृक्ष पर वर्ष के !
आशा कुम्हलायी जो
बंधी अभी छोर में ?
लिए बासी मन जगे
क्यों कोई भोर में ?
ताजा समीर बहे
क्षमता भी बढ़ी है,
कल से आज तलक
उम्र सीढ़ी चढ़ी है !
जैसा भी हो समय
नया उत्कर्ष हो,
हँसी की गूंज सदा
बीते दिन अमर्ष के !
नया जब दिन उगे
वृक्ष पर वर्ष के !
बहुत सुंदर ....जीवन उत्सव हो जैसे ....
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार तवज्जह देना ''शालिनी'' की तहकीकात को ,
जवाब देंहटाएंआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति
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अनुपमा जी व कालीपद जी स्वागत व आभार !
हटाएंयशोदा जी, बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंरविकर जी, सुस्वागतम व आभार !
जवाब देंहटाएंजैसा भी हो समय
जवाब देंहटाएंनया उत्कर्ष हो,
हँसी की गूंज सदा
बीते दिन अमर्ष के !
बहुत खूब! माँ को आल्हादित करती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंजैसा भी हो समय
जवाब देंहटाएंनया उत्कर्ष हो,
हँसी की गूंज सदा
बीते दिन अमर्ष के !
-हम भी आपके साथ यही मनाते हैं!
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंनया दिन उगा...खिला..खिलखिलाया....
सादर
अनु
एक अलग सी अनुभूति..अद्भुत लिखती हैं आप..
जवाब देंहटाएंनूतन उच्छ्वास भरें
जवाब देंहटाएंश्वासों में हर्ष के,
नया सा दिन उगा
वृक्ष पर वर्ष के !
सुंदर विचार, सुंदर प्रस्तुति. आशाओं की नयी किरण.
कैलाश जी, प्रतिभाजी, यशवंत जी, रचना जी, अमृता जी, अनु जी,अंकुर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.....नया दिन....नई आशा।
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