गुरुवार, जुलाई 4

नया जब दिन उगा

नया जब दिन उगा


नूतन उच्छ्वास भरें
श्वासों में हर्ष के,
नया सा दिन उगा
वृक्ष पर वर्ष के !

आशा कुम्हलायी जो
बंधी अभी छोर में ?
 लिए बासी मन जगे
क्यों कोई भोर में ?

ताजा समीर बहे
क्षमता भी बढ़ी है,
कल से आज तलक
उम्र सीढ़ी चढ़ी है !

जैसा भी हो समय
नया उत्कर्ष हो,
हँसी की गूंज सदा
बीते दिन अमर्ष के !

नया जब दिन उगे  
वृक्ष पर वर्ष के !


16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ....जीवन उत्सव हो जैसे ....

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  2. .बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार तवज्जह देना ''शालिनी'' की तहकीकात को ,
    आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

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  3. यशोदा जी, बहुत बहुत आभार !

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  4. रविकर जी, सुस्वागतम व आभार !

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  5. जैसा भी हो समय
    नया उत्कर्ष हो,
    हँसी की गूंज सदा
    बीते दिन अमर्ष के !

    बहुत खूब! माँ को आल्हादित करती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  6. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  7. जैसा भी हो समय
    नया उत्कर्ष हो,
    हँसी की गूंज सदा
    बीते दिन अमर्ष के !
    -हम भी आपके साथ यही मनाते हैं!

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  8. वाह बहुत सुन्दर...
    नया दिन उगा...खिला..खिलखिलाया....

    सादर
    अनु

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  9. एक अलग सी अनुभूति..अद्भुत लिखती हैं आप..

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  10. नूतन उच्छ्वास भरें
    श्वासों में हर्ष के,
    नया सा दिन उगा
    वृक्ष पर वर्ष के !

    सुंदर विचार, सुंदर प्रस्तुति. आशाओं की नयी किरण.

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  11. कैलाश जी, प्रतिभाजी, यशवंत जी, रचना जी, अमृता जी, अनु जी,अंकुर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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