एक सनातन वृक्ष जगत है
प्रकृति में ही सदा अवस्थित
सुख-दुःख दो फल धारण करता,
त्रिगुण रूप की हैं जड़ें हैं गहरी
एक सनातन वृक्ष जगत है !
पंच भूत, मन, बुद्धि आदि
है अष्ट शाखाओं वाला
सप्त धातुएं छाल बनी हैं
एक सनातन वृक्ष जगत है !
नव द्वार के कोटर धरता
दस प्राण हैं पत्ते जिस पर
रस देता पुरुषार्थ रूप में
एक सनातन वृक्ष जगत है !
पंच इन्द्रियों से जाना जाता
उत्पन्न होकर बढ़ता, मिटता
दो पंछी रहते हैं जिस पर
एक सनातन वृक्ष जगत है !
सरल , सुन्दर शब्दों में सनातन-वृक्ष को सुंदरता से बांच दिया.. अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंदार्शनिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंअमृता जी, माहेश्वरी जी, ओंकार जी, प्रसन्न जी, कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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