पाने को सारा आकाश है
खोने को कुछ भी नहीं यहाँ
पाने को सारा आकाश है !
जाने या ना जाने कोई
होती उसकी ही तलाश है !
मेघ उसी की गाथा गाते
होता पल्लवित पलाश है !
जोड़ तोड़ मन जो करता है
अक्सर होता वही निराश है !
प्रीत नीर भरते मनघट से
झर जाता भीतर प्रकाश है !
उसको जिसने सौंप दिया सब
खो जाती हर एक आश है !
आपकी लिखी रचना शनिवार 03 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी
हटाएंपाने को सारा आकाश है ....... बस यही याद रह जाये तो फिर क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
सुंदर सन्देश परक रचना..
जवाब देंहटाएंसब- कुछ सौंप कर ही मन परम निश्चिंत हो सकता है - फिर और क्या चाहिये !
जवाब देंहटाएंwah bahut sundar ...
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंमन के भाव को शब्दों में लिखा है ...
जवाब देंहटाएंइसी एक इश्वर को सब कुछ सौंप देना निश्चित हो जाना है ...
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम ..
जवाब देंहटाएंसदा जी, शिल्पा जी, रेवा जी, अमृता जी, प्रतिभा जी, संजय जी, ओंकार जी व दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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