चम्पा सा खिल जाने दें मन
चलो उठें, अब बहुत सो लिये
सुख स्वप्नों में बहुत खो लिये,
दुःख दारुण पर बहुत रो लिये
अश्रु से पट बहुत धो लिये !
उठें, करवटें लेना छोड़ें
दोष भाग्य को देना छोड़ें,
नाव किनारे खेना छोड़ें
दिवा स्वप्न को सेना छोड़ें !
जागें दिन चढ़ने को आया
श्रम सूरज बढ़ने को आया,
नई राह गढ़ने को आया
देव हमें पढ़ने को आया !
होने आये जो हो जाएँ
अब न खुद से नजर चुराएँ,
बल भीतर है बहुत जगाएँ
झूठ-मूठ न देर लगाएँ !
नदिया सा बह जाने दें मन
हो वाष्प उड़ जाने दें मन,
चम्पा सा खिल जाने दें मन
लहर लहर लहराने दें मन !
नदिया सा बह जाने दें मन
जवाब देंहटाएंहो वाष्प उड़ जाने दें मन,
चम्पा सा खिल जाने दें मन
लहर लहर लहराने दें मन !
अनीता जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! मन में उतर गई !
- संजय भास्कर
स्वागत व आभार संजय जी !
हटाएंआशा और नवीन रस का संचार करती रचना ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंमन को अपने हिसाब से चलाने लगें तो सारी बाधायें ही समाप्त , तभी कबीर ने कहा था - 'मन के मते न चालिए ...'
जवाब देंहटाएंसही कहा है प्रतिभा जी आपने..
हटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें
जवाब देंहटाएंदेव हमे पढ़ने को आया!
जवाब देंहटाएंआपकी पूरी कविता नींद से जगाती है तो यह एक पंक्ति आइना दिखती है।
मदन जी व देवेन्द्र जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं