शनिवार, अगस्त 10
बुधवार, जून 22
नदिया ज्यों नदिया से मिलती
हर सुख-दुःख भी तुझसे संभव,
यह ज्ञान और अज्ञान सभी
तुझसे ही प्रकटा सुंदर भव !
तू बुला रहा हर आहट में
हर चिंता औ' घबराहट में,
तूने थामा है हाथ सदा
आतुरता नहीं बुलाहट में !
हो स्वीकार निमंत्रण तेरा
तेरे आश्रय में सदा रहूँ,
अब लौट मुझे घर आना है
तुझ बिन किससे यह व्यथा कहूँ !
‘मैं’ तुझसे मिलने जब जाता
मौन मौन में घुलता जाये,
शब्द हैं सीमित मौन असीम
वही मौन ‘तू’ को झलकाए !
‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता
जगत दिखा जब मिलने जाए,
खुद से अनजाना ही रहता
वक्त का पहिया चलता जाए !
नदिया ज्यों नदिया से मिलती
सागर में जा खो जाती है,
‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ
कोई खबर नहीं आती है !
शनिवार, जनवरी 22
यहाँ हवाएं भी गाती है
मंगलवार, जनवरी 4
अब लौट मुझे घर आना है
अब लौट मुझे घर आना है
हर भाव तुझे अर्पित मेरा
हर सुख-दुःख भी तुझसे संभव,
यह ज्ञान और अज्ञान सभी
तुझ एक से प्रकटा है यह भव !
तू बुला रहा हर आहट में
हर चिंता औ' घबराहट में,
तूने थामा है हाथ सदा
आतुरता नहीं बुलाहट में !
हो स्वीकार निमंत्रण तेरा
तेरे आश्रय में सदा रहूँ,
अब लौट मुझे घर आना है
तुझ बिन किससे यह व्यथा कहूँ !
‘मैं’ तुझसे मिलने जब जाता
मौन मौन में घुलता जाये,
जिसकी गूंज अति प्यारी है
कोई मनहर राग गुंजाये !
‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता
मौन हुआ जब मिलने जाए,
शब्द हैं सीमित मौन असीम
वही मौन ‘तू’ को झलकाए !
नदिया ज्यों नदिया से मिलती
सागर में जा खो जाती है,
‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ
कोई खबर नहीं आती है !