सोमवार, नवंबर 24

चम्पा सा खिल जाने दें मन

चम्पा सा खिल जाने दें मन

चलो उठें, अब बहुत सो लिये
सुख स्वप्नों में बहुत खो लिये, 
दुःख दारुण पर बहुत रो लिये
अश्रु से पट बहुत धो लिये !

उठें, करवटें लेना छोड़ें
दोष भाग्य को देना छोड़ें,
नाव किनारे खेना छोड़ें
दिवा स्वप्न को सेना छोड़ें !

जागें दिन चढ़ने को आया
श्रम सूरज बढ़ने को आया,
नई राह गढ़ने को आया
देव हमें पढ़ने को आया !

होने आये जो हो जाएँ
अब न खुद से नजर चुराएँ,
बल भीतर है बहुत जगाएँ
झूठ-मूठ न देर लगाएँ !

नदिया सा बह जाने दें मन
हो वाष्प उड़ जाने दें मन,
चम्पा सा खिल जाने दें मन
लहर लहर लहराने दें मन ! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. नदिया सा बह जाने दें मन
    हो वाष्प उड़ जाने दें मन,
    चम्पा सा खिल जाने दें मन
    लहर लहर लहराने दें मन !

    अनीता जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! मन में उतर गई !
    - संजय भास्कर

    जवाब देंहटाएं
  2. आशा और नवीन रस का संचार करती रचना ... भावपूर्ण ...

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।

    जवाब देंहटाएं
  4. मन को अपने हिसाब से चलाने लगें तो सारी बाधायें ही समाप्त , तभी कबीर ने कहा था - 'मन के मते न चालिए ...'

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें

    जवाब देंहटाएं
  7. देव हमे पढ़ने को आया!

    आपकी पूरी कविता नींद से जगाती है तो यह एक पंक्ति आइना दिखती है।

    जवाब देंहटाएं
  8. मदन जी व देवेन्द्र जी, स्वागत व आभार !

    जवाब देंहटाएं