नींद उड़ी रातों की उनकी
काले धन को गोरा कर लें
इसी जुगत में हैं कुछ लोग,
नींद उड़ी रातों की उनकी
भरे तिजोरी में जो नोट !
नोटों के बंडल के बंडल
कर चोरों के दिल में हलचल,
दूजों के खातों में डालें
तरह-तरह के करते छल बल !
सोना, चाँदी तोल रहे हैं
कहीं जमीनों के भी चक्कर,
किसी तरह भी टैक्स बचा लें
बने हुए कैसे घनचक्कर !
जाने किस मिट्टी के बने हैं
चैन से ऊपर धन को रखते,
इज्जत चाहे लगी दांव पर
काले धन से बाज न आते !
आँखें फ़टी हुई रह जातीं
अख़बारों मे वही छप रहे,
बात करोड़ों और किलों की
बिरला, टाटा रोज बन रहे !
किन्तु न अब यह और चलेगा
कानून अब नहीं बिकेगा,
कालाबाजारी न होगी
देश नहीं यह जुर्म सहेगा !
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