चलो चलें उस तट हो आएं
एक शमा जलती रहती है
एक नदी बहती रहती है,
एक ध्वनि मद्धिम-मद्धिम सी
कानों में धुन सी बजती है !
चलो चलें उस तट हो आएं
स्वयं भी एक ज्योति बन जाएँ,
भँवरा बन गुंजाएं आलम
मन की तितली यह कहती है !
कुसुमों ने ज्यों गन्ध छुपायी
सागर में मोती रहता है,
स्वर्णिम आभा भावों में भर
पलकों से धारा बहती है !
गगन समेटे अनगिन तारे
मीन बसे लहरों में रंगीं,
जीवन कितने राज छुपाये
पल-पल यह सृष्टि गहती है !
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं