बस वही खिल मुस्कराया
एक रिश्ता दोस्ती का
फलसफा यह जिंदगी का,
खूबसूरत सा जहाँ यह
एक नाता हो ख़ुशी का !
अजनबी बनकर रहा जो
भेंट आँसूं , दर्द पाया,
घर बनाया जग को जिसने
बस वही खिल मुस्कराया !
चाँद-तारे गा रहे यह
फूल, पंछी भी सुनाते,
झोलियाँ भर गीत उर में
हर घड़ी वे गुनगुनाते !
बह रहा अंतर गुहा से
एक निर्झर प्रीत का है,
द्वार खुलते ही मिलेगा
पाहनों से जो ढका है !
सुन रही सारी दिशाएँ
खोल दें अरमान दिल के,
बाँह फैलाये खड़ा वह
निकट आ जाएगा चल के !
बहुत सुन्दर ... आशा का एहसास कराती रचना ... उन्मुक्त जीवन की दिशा खोजती ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 07 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार !
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