एक कोमल गीत जैसे
जिंदगी हर पल नयी है
नींव खुद हमने गढ़ी थी,
जिन पलों की कल किसी दिन
आज वह सम्मुख खड़ी है !
सुप्त था मन होश न था
स्वप्न देखा बेखुदी में,
जब मिला साकार होकर
नींद रातों की उड़ी है !
सुखद पल जो भी मिले हैं
खुशनुमा से सिलसिले हैं,
ख्वाब बन कर जो सजे थे
उन्हीं लम्हों की लड़ी है !
एक कोमल गीत जैसे
था छुपा अंतर कवि के
ले रहा आकार सुंदर
उसी रचना की कड़ी है !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 06 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , मंगलकामनाएं आपकी कलम को
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