घर जाना है
दृष्टि का ही फेर है सब
रात में दिन और
दिन में रात नजर आती है
जहाँ धूप है खिली वहाँ छाँव
जहाँ हो सकते हैं फूल
वहीँ अजीब सी गन्ध भर जाती है
नहीं मुमकिन नजारे बदलें
जगत को जैसा है वह
वैसा ही देखना होगा
सपनों में दौड़ रहे अश्व से उतर कर
पल भर ही सही थम कर बैठना होगा
ढलती शाम में जो सूर्योदय
की कल्पना कर हुलसता है
उस मन को घर की राह
पर कदम रखना होगा !
दृष्टि का ही फेर है सब
रात में दिन और
दिन में रात नजर आती है
जहाँ धूप है खिली वहाँ छाँव
जहाँ हो सकते हैं फूल
वहीँ अजीब सी गन्ध भर जाती है
नहीं मुमकिन नजारे बदलें
जगत को जैसा है वह
वैसा ही देखना होगा
सपनों में दौड़ रहे अश्व से उतर कर
पल भर ही सही थम कर बैठना होगा
ढलती शाम में जो सूर्योदय
की कल्पना कर हुलसता है
उस मन को घर की राह
पर कदम रखना होगा !
उस मन को घर की राह
जवाब देंहटाएंपर कदम रखना होगा !
- लेकिन घर है कहाँ जहाँ चैन से बैठा जा सके !