गुरुवार, अगस्त 23

पाया परस जब नेह का



पाया परस जब नेह का


तेरे बिना कुछ भी नहीं
तेरे सिवा कुछ भी नहीं,
तू ही खिला तू ही झरा
तू बन बहा नदिया कहीं !

तू लहर तू ही समुन्दर
हर बूंद में समाया भी,
सुर नाद बनकर गूँजता
गान तू अक्षर अजर भी !

है प्रीत करुणा भावना
सपना बना तू भोर में,
छू पलक तू ही जगाता
सुख सम भरा हर पोर में !

तुझसे हृदय की धड़कनें
मृत्यु है तेरी गोद में,
श्रद्धा, सबूरी, अर्चना,
नव चेतना हर शब्द में !

भीतर मिला हर स्वर्ग बन
जीवन का सहज मर्म तू,
खोयी कहीं दुःख की अगन
हर नीति औ’ हर धर्म तू !

कतरा-कतरा विदेह बन
डूबा सरल उर भाव में,
पाया परस जब नेह का
मन खो गया इस चाव में !

कण-कण पगा रस माधुरी
भीगा सा मन वसन हिले,
तेरी झलक जब थिर हुई
उर में हजार कमल खिले !

मद मस्त हो उर गा उठा
जीवन बिखरता हर घड़ी,
तू ही निखरता भोर में
तू ही सजा तारक लड़ी !

तू ही गगन में चन्द्रमा
तू ही धरा पर मन हुआ,
रविकर हुआ छू ले जहाँ
तू ही खिला बन कर ऋचा !


16 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. परम पिता परमात्मा चरणों में समर्पित उत्तम रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, छाता और आत्मविश्वास “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना है।
    अनिता जी ब्लॉग जगत में आप खासा प्रभावित करती है हमें।

    जवाब देंहटाएं
  5. स्वागत व आभार सुशील जी !

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  6. तुझसे हृदय की धड़कनें
    मृत्यु है तेरी गोद में,

    भावयुक्त पंक्तियाँ

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  7. तू ही तो समाया है सर्वत्र, हे परम-चेतन !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत है आपका प्रतिभा जी, सही कह रही हैं आप..उसकी छाप जर्रे जर्रे पर है

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