मंगलवार, जून 23

भाव और अभाव

भाव और अभाव
 
जो भी दुःख है...  अभाव से उपजा है 
जो भी इच्छा है...  उस अभाव को दूर करने की है 
जो भी कर्म है...  उस इच्छा को पूरा करने के लिए है 
समीकरण सीधा है 
अभाव का अनुभव ही कर्म में लगाता है 
 
सिर पर छत हो 
घर में दाने हों 
तन ढका हो 
तब तो गिर जायेगा अभाव ?
 
नहीं, मन एक नया अभाव उत्पन्न करेगा 
 
 सुंदर सन्तान हो 
 प्रिय का संग हो 
समाज में नाम हो 
तब तो मिट जायेगा न अभाव ?
 
नहीं, मन कुछ और अभाव जगा देगा 
 
बैंक में नामा हो 
तन भी स्वस्थ हो 
सुख का हर साधन हो 
तब ? 
 नहीं, अभाव उत्पन्न करना ही मन का स्वभाव है 
 
और जीवन के अंतिम क्षण तक 
उसे पूरा करते रहना मानव की विवशता 
जब तक वह यह जान न ले 
कि अधूरा मन नहीं वास्तव में 
वह पूर्ण है ! 
 
तब हर कर्म पूर्णता से उपजेगा 
वही होगा कृष्ण का निष्काम कर्म 
जो अभाव से नहीं भाव से होता है आयास
बाँधता नहीं बाँटता है जग में निज सुवास ! 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-06-2020) को "चर्चा मंच आपकी सृजनशीलता"  (चर्चा अंक-3742)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. इस लिंक से सूचना दें

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुंदर अनीता जी , मन के भावों में अभाव की अनुभूति ही तृष्णा है जो दुःख का कारण है | कृष्ण के निष्काम कर्म तक पहुँचने में , एक इंसान का पूरा जीवन लग जाता है | सराहनीय रचना | बधाई और शुभकामनाएं|

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  4. तब हर कर्म पूर्णता से उपजेगा
    वही होगा कृष्ण का निष्काम कर्म
    जो अभाव से नहीं भाव से होता है आयास
    बाँधता नहीं बाँटता है जग में निज सुवास !

    बहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी ,सादर नमन

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