सोमवार, नवंबर 9

अस्तित्व


अस्तित्व

 


बदलियों में छुप गया

फिर आकाश में चाँद

जैसे छिप जाता है कोई

बच्चा खेल-खेल में

परदे के पीछे !

 

दूर वृक्ष की डाली पर

नीला एक फूल खिला

जैसे मुस्काया हो अस्तित्व

अपनी सृष्टि को निहार !

 

रात भर गूँजता है

संगीत झींगुरों का

अनथक वे गाते हैं

अचानक थम गया उनका गान

एक तेज आवाज से काँपी धरा !

 

शायद कहीं कोई विस्फोट हुआ

मानव की लालसा का

टूटा पुन: कोई पहाड़

समतल जमीन पाने हेतु !

 

आनंद सहज ही बरसता हो जहाँ

वहाँ आयोजन करने पड़ते हैं

लोगों को हँसाने के

यह विडंबना नहीं तो और क्या है ?  

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