शनिवार, अगस्त 31

जागरण

जागरण 


रात ढलने को है 

झूम रहा हर सिंगार हौले-हौले 

बस कुछ ही पल में 

हर पुष्प डाली से झर जाएगा 

श्वेत कोमलता से 

धरा का आँचल भर जाएगा 

कुनमुनाने लगे हैं पंछी बसेरों में 

दूर से आ रही कूक 

सूने पथ पर कदम बढ़ा रहे  

मुँह अंधेरे उठ जाने वाले 

उषा मोहक है 

उसकी हर शै याद दिलाती  

उस जागरण की 

जब चिदाकाश पर उगने को है

आत्मा का सूरज 

कुछ डोलने लगा है भीतर 

और झर गई हैं अंतर्भावनाएँ 

उसके चरणों में 

 गूँजने लगा है कोई गीत

 सहला जाता है अनाम स्पर्श

विरह की अग्नि में तपे उर को 

 भोर की प्रतीक्षा में 

यह अहसास होने लगा है 

एक दिन ऐसी ही होगी 

अंतर भोर !



बुधवार, अगस्त 28

शिवालय

शिवालय


कठिन है यात्रा कैलाश की

जहाँ मानसरोवर के निकट  

शिव का आवास है 

इसलिए उतर आये हैं शिव 

स्वयं काशी में 

गंगा तट पर किया प्रवास है 

सुगम है काशी जाना 

शिव को पाना 

फिर भी यदि कहे कोई 

दूर है काशी 

हर गाँव हर शहर में 

शिव बसते हैं 

मंदिर और शिवालय की चौखट भी 

यदि नहीं लांघी जाती 

तो स्वयं का मस्तक ही 

शिव का घर जान लें 

हर हर गंगे कहते 

सिर पर एक लोटा जल डाल लें 

उतर आएगी कैलाश की शीतलता 

भीतर कोई कहेगा 

ह्रदय गुफा में शिव का वास है 

जहाँ बसता परम उल्लास है !


सोमवार, अगस्त 26

मन

मन 


मन कहानी पर पलता है 

क्षण-प्रतिक्षण नयी-नयी बुनता है 

अपनी रास न आये तो

औरों की लेकर चटखारे सुनता है !


अनादि काल से सुनते आ रहे हैं 

बच्चे कहानियाँ 

मन उनसे ही पोषित होता 

कल्पना के नगर गढ़ता है 

खो जाता भूल-भुलैयों  में 

सपनों में जगता है !


मन कहानियों का प्रेमी है 

गढ़ लेता है नायक स्वयं ही 

खलनायक भी चुनता है 

फिर क्या हुआ ?

यही चलाता है उसे 

सच से घबराता है !


ख़ुद ही सवाल उठाता 

जवाब भी बन जाता है 

मन में चलता है नाटक 

परदा कभी न गिरता है !


शब्दों का घेरा इक 

इर्द-गिर्द डाल लेता 

उस पार क्या है 

जान नहीं पाता 

अपने ही महलों में 

रात-दिन विचरता है 

मन कहानी पर पलता है !


शुक्रवार, अगस्त 23

चुपके से जब दिल की साँकल

चुपके से जब दिल की साँकल 


दिल की गहराई में शायद 

गोमुख एक छिपा रखा है, 

गंगा जिस दिन बह निकलेगी 

उस दिन सारे राज खुलेंगे !


सारे पत्थर ‘मैं’ और ‘तू’ के 

चूर चूर हो बह जाएँगे, 

छलक-छलक कर जल के धारे

रस में हमें भिगो जाएँगे !


कितनी परिचित सी है गाथा 

वह अनमोल घड़ी आयी थी,  

चुपके से जब दिल की साँकल 

तुमने आकर खड़कायी थी !


मंगलवार, अगस्त 20

सुधि

सुधि   


छाया बना प्रतिक्षण डोले 

स्मरण तुम्हारा बंधन खोले, 

जब से जीवन का स्पर्श हुआ 

कण-कण हँसकर जैसे बोले !


मेरे कदमों की ये छापें 

कितनी मिलतीं उन कदमों से, 

मेरे शब्दों का ज़िद्दीपन 

कितना मिलता तेरी ज़िद से !


मन के हरियाली आँगन में 

पंछी तो है तेरे वन का, 

मन के उजियाले दर्पण में 

अंकन तो है तेरे मन का !


मन मेरा है सोचें तेरी 

दृग मेरे में सूरत तेरी, 

दिल मेरा है साँसें तेरी 

अधरों ऊपर बातें तेरी !


तेरी आँखों का सूनापन 

मेरे सपनों की सच्चाई, 

मन के मतवाले सागर  में 

किश्ती डोले तेरी सुधि की !


रविवार, अगस्त 18

प्यार का राज यही



प्यार का  राज यही


लिखना-पढ़ना, हँसना-रोना  इतना ही तो आता था 

 आँखों से बतियाना लेकिन तुम्हीं ने सिखला दिया 


ज़िंदगी का यह सफ़र धूप में जब-जब कटा 

बदलियों का एक छाता तुम्हीं ने लगा दिया


कुछ कहें दिलों की दुनिया की कुछ सुनें 

प्यार का  राज यही, तुम्हीं ने बता दिया 


दिल अगर उदास हो देख लो आईना 

प्रीत का चंद्रमा तुम्हीं ने झलका दिया


प्रेम की बयार भी जब अभी बही न थी 

ह्रदय में गुलाब इक तुम्हीं ने उगा दिया


गुरुवार, अगस्त 15

स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ

स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ 


गगन  रंगा  केसरिया आज 

प्रकृति  भी फहराये तिरंगा, 

माटी का इक खंड नहीं है 

भारत भू है दिल धरती का !


देश आज आगे बढ़ता है 

बाधायें कितनी भी आएँ, 

क़ुर्बानी देकर जो पायी 

आज़ादी नव स्वप्न दिखाए !


सागर की धुर गहराई हो 

या अंतरिक्ष की ऊँचाई, 

देश-विदेश भारतीयों ने 

प्रतिभाओं की अलख जगायी !


माना अभी राह लंबी है

विकसित होने में भारत के,

इकजुट होकर पूर्ण करेंगे 

स्वप्न सभी भारतीय मिल के !


मंगलवार, अगस्त 13

पीड़ा

पीड़ा 

ऐसी ही तो होती है पीड़ा

जैसे जम गया हो भीतर 

उदासी का एक पर्वत  

अवरोधित हो गयी हो

अविरल धारा 

जो बहा करती थी निर्द्वंद्व !

तरस रहा हो प्रेम का पंछी 

भरने को उड़ान 

क़ैद है शिशु ज्यों 

माँ के गर्भ में

समय से ज़्यादा 

पा रहा है पोषण 

पर तृप्त नहीं  

जन्मना चाहता है 

हवाओं में सांस लेना 

खुली धूप में चलना 

दौड़ना चाहता है 

पाना चाहता है तुष्टि 

प्रकृति के सान्निध्य में ! 


शनिवार, अगस्त 10

बरबस प्यार जगाये कोई

बरबस प्यार जगाये कोई


जीवन बँटता ही जाता है 

पल-पल याद दिलाये कोई, 

किसकी राह खड़े ताकते 

मधुर पुकार लगाये कोई !


अपनी-अपनी क़िस्मत ले कर 

कोकिल और काग गाते हैं, 

दोनों के ही भीतर बसता 

बरबस प्यार जगाये कोई !


नदिया दौड़ी जाती देखो 

सागर से मिलने को आतुर, 

उर मतवाला मिटना चाहे 

एक पुकार लगाये कोई !