सुधि
छाया बना प्रतिक्षण डोले
स्मरण तुम्हारा बंधन खोले,
जब से जीवन का स्पर्श हुआ
कण-कण हँसकर जैसे बोले !
मेरे कदमों की ये छापें
कितनी मिलतीं उन कदमों से,
मेरे शब्दों का ज़िद्दीपन
कितना मिलता तेरी ज़िद से !
मन के हरियाली आँगन में
पंछी तो है तेरे वन का,
मन के उजियाले दर्पण में
अंकन तो है तेरे मन का !
मन मेरा है सोचें तेरी
दृग मेरे में सूरत तेरी,
दिल मेरा है साँसें तेरी
अधरों ऊपर बातें तेरी !
तेरी आँखों का सूनापन
मेरे सपनों की सच्चाई,
मन के मतवाले सागर में
किश्ती डोले तेरी सुधि की !
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 21 अगस्त 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंमेरे कदमों की ये छापें
जवाब देंहटाएंकितनी मिलतीं उन कदमों से,
मेरे शब्दों का ज़िद्दीपन
कितना मिलता तेरी ज़िद से !
कमाल का छंद !
वैसे तो इस कविता का हर बंध ही कमाल है....