शुक्रवार, अक्तूबर 1

रह-रह कर भीतर वंशी धुन

रह-रह कर भीतर वंशी धुन

बिखरा है बन कर उजास
मिलता है तू श्वास-श्वास
कहाँ समेटूँ कहाँ समोऊँ
पूछ रहा मन ले उच्छ्वास !

पलकों में मुस्कान छिपी
अश्रु रस्ता भूल गए हैं
अधरों पर नित गीत सजे
पुष्प प्रीत के झूल गए हैं I

मौसम मस्त हुआ मन भाए
फागुन जीवन से न जाये
थिरके कदम चाल बहकी सी
नाम खुमारी जब चढ़ जाये I

पोर-पोर में गंध उठ रही
कोर-कोर में सुलगे अग्नि
रह-रह कर भीतर वंशी धुन
पंछी स्वर वीणI सुर ध्वनि I

लूट मची है ले लो राम
जग में न कोई दूजा काम
सत्य का दामन थामा जिसने
मिलता उसको ही विश्राम I

सुख सरिता में डूब रहा मन
भीतर उग आये हैं उपवन
कितना सुंदर क्रम जीवन का
नेह पगा है मन का कण कण I

अनिता निहालानी
१ अक्तूबर २०१०

2 टिप्‍पणियां:

  1. पलकों में मुस्कान छिपी
    अश्रु रस्ता भूल गए हैं
    sundar atisndar badhai

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  2. सच कहा जो है बस तू ही तू है……………जब मै और मेरा का भाव मिट जाता है तब आनन्द ही आनन्द रहता है।

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