बुधवार, नवंबर 3

दीवाली के दीपक


दीवाली के दीपक



उजाला बिखेरा धरा पर दियों ने,
दिलों को भी रोशन किया चाहते हैं !

मिटी कालिमा रात जगमग हुई ज्यों,
ज्ञान दीपक हृदय में बसा चाहते हैं !

श्रद्धा जहाँ गहरी रचबस गयी हो,
दीये उस उर में रहा चाहते हैं !

जल उठी जिस तरह लौ से लौ  झूम कर,
उजाले दिलों के बहा चाहते हैं !

जहाँ स्वच्छता हो वहीं वास सुख का,
दीवाली के दीपक कहा चाहते हैं !

अनिता निहालानी
३ नवम्बर २०१०      

9 टिप्‍पणियां:

  1. अनीता जी,

    हमेशा की तरह सुन्दर कविता ...आपके अपने अंदाज़ में दीपावली पर ये कविता पसंद आई.....

    "उजाला बिखेरा धरा पर दियों ने, दिलों को भी रोशन किया चाहते हैं !

    काश ऐसा ही हो दीयों की तरह दिल भी रोशन हो जाएँ सबके........आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|

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  2. बहुत सुन्दर भावों से सजी सुन्दर रचना


    दीपावली की शुभकामनाएं

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  3. गौर वर्ण का प्यारा दीपक, कजरी मन को भाये दीपक,
    बैठी काजल कंचन के ऊपर, स्नेह डोर से बंधा है दीपक.
    चौकठ पर पहरेदार है दीपक, प्रवेश द्वार लहराए दीपक,
    आंधी और तूफ़ान में देखो, साहस खूब दिखाए दीपक.

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  4. बहुत सुन्दर, दीपावली की शुभकामना!

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  5. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...

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  6. आप सबको भी दीपावली की ढेरों शुभकामनायें! डाक्टर तिवारी जी, आप की कविता बहुत सुंदर है, छोटा सा दिया कितने राज अपने भीतर छिपाए है, बस देखने वाली नजर चाहिए .... .

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  7. दीपावली की शुभकामनाओं के साथ इस प्यारी रचना के लिए ढेरों बधाई ...
    अब तो अच्छी दीवाली मनेगी ..

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  8. सुन्दर रचना। बधाई।आपको व आपके परिवार को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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