वह आता है
जब सब कुछ
दे डालो उसको !
मन का नेह
प्रीत अंतर की,
प्यार हृदय का!
बिना चाह के,
तब वह धीरे से
आता है!
दे जाता है
प्रेम निधि,
अमोल रिधि,
सहज विधि!
बिना कहे कुछ
श्वास श्वास में
तन में, मन में
कण-कण, पोर-पोर
जीवन में !
नयनों में
मीठे बैनों में
अतल आत्मा के
गह्वर में !
जल में, थल में
वसुधा तल में !
एक वही तो
डोल रहा है
पट भीतर के
खोल रहा है !
अनिता निहालानी
२२ नवम्बर २०१०
बहुत सुन्दर भाव ...प्रेम में ही ईश्वर है
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंसच है जब प्रेम अपने तीसरे ताल पर होता है तो अस्तित्व के साथ जुड़ता है....फिर कण-कण में वही दिखता है....बहुत सुन्दर कविता |