उत्सव के बाद
जाने किसने भीतर फोड़ी,
अनजानी सी कुछ अनछूई
खुशियों की चादर है ओढ़ी !
नेह पगा मन टपकाए जो
रस की मधुरिम धार नशीली,
बिन कारण अधरों पर अंकित
कोमल सी मुस्कान रसीली !
स्मृतियाँ नहीं स्वप्न ही कोई
भीतर एक खाली आकाश,
उसी शून्य से झर झर झरता
मदमाता शुभ स्नेहिल प्रकाश !
कदमों में थिरकन भर जाता
हाथों में क्षमता वह अभिनव,
नयनों में जल प्रीत है भरा
मन अंतर में उल्लास प्रणव !
गुनगुन करता कोई विचरे
चिर चिन्मय का गान गूंजता,
तार जुड़ें जब हों अदृश्य से
ध्यान बिना साधे है लगता !
उत्सव के उजास में डूबा
जाने कौन पाहुना आया,
मन जब अपने घर को लौटा
चैन जहाँ भर का फिर पाया !
अनिता निहालानी
६ नवम्बर २०१०
उत्सव के उल्लास में डूबा जाने कौन पाहुना आया, मन जब अपने घर को लौटा चैन जहाँ भर का फिर पाया I
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
आदरणीय अनिता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
गुनगुन करता कोई विहरे
जवाब देंहटाएंचेतनता का गूंजता गान,
तार जुड़ें जब हों अदृश्य से
बिन साधे लगता है ध्यान I
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अनीता जी...... दिल को छू गईं .
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, भाव से परिपूर्ण, उत्सव के उल्लास में डूबा ........बधाई
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार और अभिनदंन उत्सव के उल्लास में डूबने के लिये!
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