एक बार दीवाली ऐसी
बाहर दीप जलाये अनगिन
भीतर रही अमावस काली,
ज्योति पर्व मने कुछ ऐसा
मन अंतर छाये उजियाली !
तन का पोर-पोर उजला हो
फूट-फूट कर बहे ऊर्जा,
सुगठित, स्वच्छ, स्वस्थ देह में
दीप जले इक नव उमंग का !
प्राण में न कम्पन होता हो
सधा, सहज वह आये जाए,
श्वासों की सुंदर माला से
हृदय गुफा में देव रिझाएँ !
मन प्रांगण को भाव से लीपें
तृप्ति का अमृत जल छिडकें,
सत्य शिला पर शिव बैठे हों
सुंदर गीत रचें भक्ति के !
प्रज्ञा की इक बेल उगी हो
शील, समाधि के फल आयें,
भीतर इक उजास बिखरी हो
वाणी में भी जो छलकाए !
तब बिखरेगी हँसी फुलझड़ी
आनंद का अनार फूटेगा,
मुस्कानों के दीप जलेंगे
झर-झर कर आलोक बहेगा !
सिहर-सिहर जायेगी कालिमा
तमस रात्रि उजियारी होगी,
प्रेम सुरभि महका कर शोभित
ज्योति की फुलवारी होगी !
नयनों से फूटेंगी किरणें
अधरों से इक खनक नशीली,
मन से प्रेम प्रकाश बहेगा
वाणी से इक दुआ रसीली !
दीवाली का अर्थ यही है
मन का तमस विदा हो जाये,
तृष्णा कीट जलें अग्नि में
अंतर से अकुलाहट जाये !
पंचकोश पावन हों भीतर
नव द्वार फिर आलोकित हों,
दशम द्वार से परिचय पालें
उस पाहुन का स्वागत हो !
एक बार दीवाली ऐसी
जगमग जग अपना कर देगी,
सदा-सदा को मन मंदिर में
ज्योतिर्मय सपना भर देगी !
दीवाली का अर्थ यही है
जवाब देंहटाएंमन का तमस विदा हो जाये,
तृष्णा कीट जलें अग्नि में
अंतर से अकुलाहट जाये !
...बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...काश सभी ऐसी दिवाली मनाएं..बहुत उत्कृष्ट..आभार
सुन्दर भावों को दर्शाती एक बेहतरीन रचना.......
जवाब देंहटाएंकाश दीवाली ऐसी हो।
जवाब देंहटाएंबाहर दीप जलाये अनगिन
जवाब देंहटाएंभीतर रही अमावस काली,
ज्योति पर्व मने कुछ ऐसा
मन अंतर छाये उजियाली !
बहुत ही अच्छी मन को छू लेने वाली बात कही है आपने. मैं भी आपके पीछे-पीछे आ रहा हूँ और आपके ही स्वर में स्वर मिला रहा हूँ -
तेल की तली को भी
मै खूब जालाता रहा,
चिराग तले जो अंघेरा था,
उसे मिटाता रहा.
सदा-सदा को मन मंदिर में
जवाब देंहटाएंज्योतिर्मय सपना भर देगी !
बढ़िया प्रस्तुति |
हमारी बधाई स्वीकारें ||
दीवाली का अर्थ यही है
जवाब देंहटाएंमन का तमस विदा हो जाये,
तृष्णा कीट जलें अग्नि में
अंतर से अकुलाहट जाये !
दीवाली को सही अर्थों में पहचानने का सफल प्रयास. काश दीवाली सभी के मन के तामस को दूर करने में इस बार अवश्य सफल हो. धन्यबाद.
बहुत सुंदर कल्पना है।
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार! प्रवीण जी व मनोज जी, इस कल्पना को वास्तविकता में बदलना हमारे ही हाथ में है... जगत का मालिक हमारा अपना है तो फिर कैसी फ़िक्र...मान ही लीजिए कि ऐसा ही है और हो जायेगा..
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
दीवाली का अर्थ यही है
जवाब देंहटाएंमन का तमस विदा हो जाये,
तृष्णा कीट जलें अग्नि में
अंतर से अकुलाहट जाये !
बहुत ही अच्छा संदेश देती पंक्तियाँ।
सादर