कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते  
दीवाली अभी गयी नहीं है 
भाई दूज  है याद दिलाता, 
बहना के अंतर में निर्मल 
स्नेह की पावन धार बहाता ! 
पुलक जगी कैसी भीतर जब 
फोन की घंटी थी खनकाई, 
कानों में भाई-भाभी की 
प्रीत भरी जब ध्वनि सुनाई ! 
हफ्तों पहले भेज दिया था
बहुत सहेज के अक्षत-केसर, 
मुहं मीठा करने को बांधा 
छोटी सी पुडिया में शक्कर ! 
सदा सुखी हो प्रियजनों सँग 
यही दुआ मन आज दे रहा, 
सहज हृदय की गहराई से 
सबके हेतु यही कह रहा ! 
स्नेह ही है जीवन की थाती
दिल में इसे समाये रहते, 
जग में सब कुछ मिल सकता है 
कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते !
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स्नेह ही है जीवन की थाती
जवाब देंहटाएंदिल में इसे समाये रहते,
जग में सब कुछ मिल सकता है
कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते !
बहुत सुंदर । धन्यवाद ।
भाई दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी लगी।
सादर
रिश्ते ही हमारी जिंदगी को सहेजते हैं!
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
मन को सुकूं पहुंचाती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसही कहा वो कोमल रिश्ते जो नेह के धागे में बंधे हैं. कहीं और नहीं मिलते..
जवाब देंहटाएंस्नेह ही है जीवन की थाती
जवाब देंहटाएंदिल में इसे समाये रहते,
जग में सब कुछ मिल सकता है
कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते !
कोमल रिश्ते !!
सचमुच अब स्वप्नवत हैं, संसार कितना कठोर है।
कहां मिलेंगे कोमल रिश्ते
जवाब देंहटाएंसच है !!
आपकी पोस्ट की हलचल आज (29/10/2011को) यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंआज 29- 10 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
वाह बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंदिवाली पर मन को छूती हुई सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंwww.belovedlife-santosh.blogspot.com