दिल जाये कुर्बान....
श्रद्धा का एक बिरवा रोपा है उसने
मन की धरा पर
सच की खेती करने का बीड़ा उठाया है
जन्मों तक झूठ को आजमाने के बाद...
भ्रम, जो खा रहे थे दीमक की तरह
बुद्धि की इमारत को,
जला डाले हैं और
उखाड़ फेंकी हैं वे दीवारें तेरी-मेरी की
जो खड़ी कर लीं थी यूँ ही
किसी कमजोर क्षण में...
उस बिरवे में फल लगेगा
प्रेम का जिस दिन,
उस दिन की स्मृति में
एक वादा किया है खुद से
दिल देके किसी को लौटाना है नहीं
कभी किश्तों में प्रेम चुकाना है नहीं...
देने का किया है निश्चय तो
दे ही डालना है पूरा का पूरा खुद को
प्यार जगे जो भीतर सो न जाये कहीं
पिछली बारों की तरह
जब मंजिल करीब आकर दूर चली जाती थी...
अब बड़े जतन से सींचना है
इस बिरवे को
ताकि दिल जाये कुर्बान
यही तो है दिल की शान !
बढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई ||
वाह …………बहुत सुन्दर भावो की गागर उँडेली है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअब बड़े जतन से सींचना है
जवाब देंहटाएंइस बिरवे को
ताकि दिल जाये कुर्बान
यही तो है दिल की शान !
फिर एक गज़ब की प्रस्तुति. आभार.
जहां होगी श्रद्धा , सच , विश्वास और सब कुछ दे देने का भाव वहीं प्रेम उपजेगा । बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावो की प्रस्तुति.....आभार.बहुत-बहुत बधाई ||
जवाब देंहटाएंउस बिरवे में फल लगेगा
जवाब देंहटाएंप्रेम का जिस दिन,
उस दिन की स्मृति में
एक वादा किया है खुद से
दिल देके किसी को लौटाना है नहीं
कभी किश्तों में प्रेम चुकाना है नहीं...
बहुत खूबसूरत अहसास समेटे पोस्ट.........लाजवाब |
हमेशा की तरह अति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंहेलो दोस्तों अगर आप अपने जीवन में ज्ञानवर्धक बातें और सकारात्मक विचार हिंदी में जानना चाहते है तो आप यहाँ पढ़े
जवाब देंहटाएंआचार्य चाणक्य के अनमोल विचार