बुधवार, मई 16

एक अजब सी अकुलाहट है


एक अजब सी अकुलाहट है

तन के कण-कण में विद्युत है
जहाँ जोड़ दो वह भर देती,
इक उलझन भी समाधान भी
घोर अँधेरा अथवा ज्योति !

बाहर प्राण ऊर्जा बिखरी
दैवी भी आसुरी भी है,
जिसे ग्रहण करने को आतुर
उससे युक्त सदा करती है !

द्रष्टा जिससे जुड़ जाता है
वही भाव प्रबल हो जाता,
पृथक रहे यदि वह उससे
क्षोभ न कोई छू भी पाता !

जंग लगे जब मन-बुद्धि में
एक अजब सी अकुलाहट है,
विष जब भीतर बढ़ने लगता
बढ़ती जाती घबराहट है !

रोग बनी फिर तन में रहती
या नृत्य की थिरकन बनती,
एक ऊर्जा जीवन देती
वही प्राण में सिहरन भरती !  

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रण में सिहरन भारती रचना ...!!
    बहुत सुंदर सन्देश देती हुई ....!!
    शुभकामनायें अनीता जी ....!!

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  2. जंग लगे जब मन-बुद्धि में
    एक अजब सी अकुलाहट है,
    विष जब भीतर बढ़ने लगता
    बढ़ती जाती घबराहट है !

    रोग बनी फिर तन में रहती
    या नृत्य की थिरकन बनती,
    एक ऊर्जा जीवन देती
    वही प्राण में सिहरन भरती !

    सुन्दर संदेश देती सार्थक प्रस्तुति।

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  3. जंग लगे जब मन-बुद्धि में
    एक अजब सी अकुलाहट है,
    विष जब भीतर बढ़ने लगता
    बढ़ती जाती घबराहट है !

    वाह अनीता जी वाह.............
    सादर.

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  4. बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक प्रस्तुति।..आभार सहीत शुभकामनायें अनीता जी .

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  5. तन के कण-कण में विद्युत है
    जहाँ जोड़ दो वह भर देती,
    इक उलझन भी समाधान भी
    घोर अँधेरा अथवा ज्योति !यही जोड़ना ही तो योग है ईश्वर से जुड़ जायें तो ईश्वर के गुण मिल जायेंगें वरना खाली दिमाग ----.याद रखने लायक एक श्रेष्ठ कविता.

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  6. अनुपमा जी, वन्दना जी, अनु जी, माहेश्वरी जी, दीदी, सदा, संध्या जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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