मंगलवार, फ़रवरी 3

प्रीत की बौछार

प्रीत की बौछार


आज हुई है जो बात फिर कभी वह बात न होगी
आज की रात जैसी हसीं कभी रात न होगी
आज चाँद ने खोल दिया है अन्तर अपना
चाँदनी की हो रही बरसात फिर ऐसी बरसात न होगी
आज हुई है किसी मीत से मुलाकात
शायद फिर ऐसी मुलाकात न होगी
आज बरसा है टूट कर मेघ शायद फिर न बरसे
आज पुकारा है किसी ने दूर से
फिर यह घटे न घटे
आज बजती हैं झाँझरें और खिलते हैं कमल

आज सजती हैं बहारें और उमड़े आते हैं बादल !

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह प्रेम की ही अनुभूति है कि चाँद और चांदनी , बादल और बरसात ,फूल-पत्ते ...सब कुछ विशिष्ट हो जाता है . सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति .

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  2. गिरिजा जी व कैलाश जी, स्वागत व आभार !

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  3. मन का उल्लास शब्दों में बिखर पड़ा .

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