बुधवार, अक्तूबर 14

देखो पल में कहाँ खो गया

देखो पल में कहाँ खो गया


बड़ी-बड़ी बातें करता था
पा के रहेंगे दम भरता था
था कितना दीवाना सा दिल
मुट्ठी में रेत भरता था !

बात-बात पर रूठा करता
घड़ी-घड़ी जो टूटा करता
था कितना अनजाना सा दिल
अपना दामन आप धो गया !

अपना कद ऊंचा करने की
ज्ञान निधि भीतर भरने की
तिकडम सदा लगाता जो दिल
स्वयं ही तो शून्य हो गया !

इसे बता दे उसे जता दे
इसे सिखा दे उसे धता दे
 इसी जोड़तोड़ में रहता
दिल बेचारा धूल हो गया !

मिटकर ही चैन पाया है
लौट के अपने घर आया है
एक बबूला ही तो था दिल
पल भर में ही हवा हो गया !

कितने ही दावे कर डाले
महल हवा में ही गढ़ डाले
पानी में दीवारें चुनता
अन्तरिक्ष में कहीं खो गया !


12 टिप्‍पणियां:

  1. दिल का इससे सुंदर वर्णन नहीं हो सकता....

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2130 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने। चित्र भी अच्‍छा लगाया। मेरे ब्‍लाग पर आपका स्‍वागत है।

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  4. यही तो एक शाश्वत सत्य है जिससे हम जानकर भी अनजान बने रहते हैं...बहुत सटीक और सारगर्भित प्रस्तुति...

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    1. अनजान बने रहकर ही दुःख के भागी होते हैं..आभार !

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  5. दिल कहो या मन उसकी गति ही न्यारी है .

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