मन पाए विश्राम जहाँ
नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
शुक्रवार, जनवरी 20
तब
तब
जब मन ही मन है भीतर
एक पहेली सा
भरमाता है जीवन
खो जाता है जब मन
आत्मा के सान्निध्य में
बन जाता है क्रीड़ांगण
आत्मा भी जब चकित हुई सी
तकती है अस्तित्व को
परमात्मा जग जाता है
खिल उठता है वृन्दावन
परमात्मा भी निहार जिसे
जब मुग्ध हुआ हो
तब ?
1 टिप्पणी:
Amrita Tanmay
4 फ़रवरी 2017 को 3:24 pm बजे
हाँ ! मुग्ध होता है परमात्मा तब ।
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हाँ ! मुग्ध होता है परमात्मा तब ।
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