शुक्रवार, जनवरी 20

तब



तब 

जब मन ही मन है भीतर 
  एक पहेली सा
भरमाता है जीवन
खो जाता है जब मन
आत्मा के सान्निध्य में  
 बन जाता है  क्रीड़ांगण
आत्मा भी जब चकित हुई सी 
तकती है अस्तित्व को 
परमात्मा जग जाता है 
 खिल उठता है वृन्दावन 
 परमात्मा भी निहार जिसे  
 जब मुग्ध हुआ हो 
तब ?

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