कौन बहाए नदिया निर्झर
कुह कुह कलरव भ्रमरों के स्वर
मर्मर राग भरे हैं भीतर,
कौन सजाए कोमल झुरमुट
कौन बहाए नदिया निर्झर !
पुलक चकित शावक के दृग में
गतिमय मृगदल अति सुरम्य,
रूप-रंग विचित्र सृजे हैं
एक अनोखा लोक अरण्य !
गहन शांति में सोयी हो ज्यों
नीरव तट पर मौन धरे,
बही ज्योत्स्ना पूर्ण चन्द्र से
तपती भू का ताप हरे !
एक योजना से चलती है
गुपचुप-गुपचुप सारी क्रीड़ा,
पटाक्षेप उसी दिन होगा
काल हरेगा सारी पीड़ा !
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