नींद और जागरण
खुद का पता भी अक्सर गैरों से पूछते हैं
जाहिर सी बात है कि अब तक भटक रहे हैं
ऊँगली जरा दिखायी मुरझाया दिल कमल
खिल जाये कैसे फिर से तरकीब पूछते हैं
सपने सजाये रहते दिल की पनाहगाह में
सच दूसरे करेंगे भ्रम ऐसे पालते हैं
अपनी खबर नहीं है जग का हिसाब रखते
इक नींद ले रहे हैं लगता है जागते हैं
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-01-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2576 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस ~ कवि गोपालदास 'नीरज' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार सुशील जी !
हटाएंBhut achhi kavita likha hai apne, is kavita ko book ka roop dene ke liye hme visit kre:https://www.onlinegatha.com/
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