विवाह की पचीसवीं सालगिरह पर
स्वयं को केंद्र मानकर
दूसरे को चाहना पहली मंजिल है
जो वर्षों पहले आप दोनों ने पा ली थी
दूसरे को केंद्र मानकर
स्वयं को समर्पित कर देना दूसरी
जिसकी तलाश पूरी होने को है
न स्वयं, न दूसरे को
अस्तित्त्व को केंद्र मानकर
मुक्त हो जाना अंतिम सोपान है
जिसकी दुआ हम देते हैं
खुद से पार चला जाये जब कोई
तब सिद्ध होता है अभिप्राय
आप के जीवन में
जल्दी ही ऐसा दिन आए !
बह् सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंउत्तम .... सुन्दर शब्द पर केवल पच्चीसवीं ही क्यों ...
जवाब देंहटाएंपच्चीसवीं दो कारणों से, यह कविता छोटी बहन के लिए लिखी जिसकी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह पिछले महीने थी, दूसरा इसी वक्त के लगभग उम्र पचास के आस-पास हो जाती है और वानप्रस्थ की ओर कदम बढ़ाए जा सकते हैं.
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ।
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