जल रहा है किन्तु जीवन
मीठे पानी का इक दरिया
निकट ही बस बह रहा है
एक कदम ही और चलो
मरुस्थल यह कह रहा है
अनसुनी कर बात उसकी
फुसफुसाहट थी जरा सी
रहे जलते और बिंधते
भनक भी न पायी जल की...
दूर से लहरों की हलचल
मंद झोंका कोई शीतल
स्वप्न में ही थी दी सुनायी
निर्झरों की मधुर कलकल
जल रहा है किन्तु जीवन
सूख प्यासा हृदय उपवन
बिन बात ही कंप जाती है
संग श्वास यह दिल की धड़कन
ज्यों पहेली एक उलझी
मिला हुआ भी खोया लगता
नींद जिसकी गुम हुई है
जागते सोया ही रहता
कभी आशा और कभी निराशा ... पर जीवन तो रहता है
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी..आशा और निराशा के पार जाकर ही सत्य के दर्शन होते हैं..
हटाएंwahhhhh mam bht achha
जवाब देंहटाएंयही तो जीवन सार है ।
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