सोमवार, सितंबर 10

जलधाराओं का संगीत


जलधाराओं का संगीत 

नभ से गिरती हुई जल धाराएँ
जिनमें छुपा है एक संगीत
जाने किस लोक से आती हैं
धरा को तृप्त कर माटी को कोख से
नव अंकुर जगाती हैं
सुंदर लगती हैं नन्ही-नन्ही बूँदें
धरती पर बहती हुई छोटी छोटी नदियाँ
जो वर्षा रुकते ही हो जाती हैं विलीन
गगन में उठा घनों का गर्जन
और लपलपाती हुई विद्युत रेखा
दिन में ही रात्रि का भास देता हुआ अंधकार
 दीप्त हो जाता है पल भर को
जैसे कोई विचार कौंध जाये मन में
और पुलक सी भर जाये तन में !


11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पं. गोविंद बल्लभ पंत और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. जबतक रौद्र रूप नहीं लेती धारायें संगीतमय ही होती हैं। सुन्दर्।

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    1. बिल्कुल सही कहा है आपने, आभार ! वैसे एक बात है, शिव का तांडव भी रौद्ररूप लिए होता है, पर उसमें भी अनुपम संगीत होता है..

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  3. बहुत बहुत आभार पम्मी जी !

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  4. बेहतरीन चित्र बन जाता है मन में जब ये रचना पढ़ते हैं।

    इमेज भी बहोत सुंदर है इस रचना की।

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  5. सचमुच नभ से बरसती जलधाराओं के मनमोहक संगीत के क्या कहने !!!!!!!! सुंदर रचना !!!!!!

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  6. जल धाराओं के इस संगीत को सुनकर आनंद आ गया

    धन्यवाद

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