जीवन - मरण
अछूते निकल जाते हैं वे
हर बार मृत्यु से
पात झर जाता है
पर जीवन शेष रह जाता है
वृक्ष रचाता है नव संसार
जब घटता है पतझर
नई कोंपलें फूटती हैं
वैसे ही जर्जर देह गिर जाती है
नया तन धरने
जब सताता हो मृत्यु का भय
तब जीते जी करना होगा इसका अनुभव
देह से ऊपर उठ
जैसे हो जाते हैं ऋषि पुनर्नवा
देह वृद्ध हो पर मन शिशु सा निष्पाप
या बालक सा अबोध
तब देह भी ढल जाती है उसके अनुरूप
चेतना के आयाम में पहुंचकर ही
नव निर्माण होता है अणुओं का
जैसे वृक्ष धारण करता है नव पात
योगी को मिलता है नव गात !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएं'पात झर जाता है
जवाब देंहटाएंपर जीवन शेष रह जाता है'
बहुत सही कहा आपने।
स्वागत व आभार !
हटाएंMarta jarjarta se peedit vyakti yahi anubhaw kare....atyant sundar
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