शुक्रवार, अक्तूबर 23

छू पाता है उस अखण्ड को

 छू पाता है उस अखण्ड को

छंद बद्ध हो जीवन अपना 

गीत, सहज संगीत जगेगा,

ऋतु, दिन-रात बंधे ज्यों लय में 

उर  से भी सुर-ताल बहेगा !


सुख-दुःख, राग-विराग भी जैसे 

आरोहण-अवरोहण बनकर, 

श्वासों के संग आ महकेंगे 

रसमय हर अनुभव को रचकर !


नहीं विषाद का इक लघु कण भी 

छू पाता है उस अखण्ड को, 

जिससे शक्ति पाती यह सृष्टि 

भाव विचार का है स्रोत जो !


कभी धूप कभी छाँह सुहाती 

मौसम कैसे बदलें मन के,

बंधा एक चक्र में जीवन 

गगन, चन्द्रमा, सागर, जल में !


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