शुक्रवार, अक्तूबर 30

शरद पूर्णिमा हर जीवन में

शरद पूर्णिमा हर जीवन में

एक दशहरा ऐसा भी हो

जल जाए हर कलुष हृदय से,

अहंकार का मुकुट गिरे फिर

भूमि पर श्री राम के शर से !


राम आत्मा का शासन हो

धी सीता घर वापस आये,

सजग चेतना ज्योति बने फिर

दीवाली सा उर सज जाए !


मृत हो सारी पूर्व धारणा

पूर्वाग्रही कुंभकर्ण हत,

अंधानुकरण हर विस्मृत हो

नित्य नवीन चेतना जागृत !


गिरें खंडहर हर विकार के

प्रलय बरसे नूतन सृष्टि हित,

आसक्ति मोह डोर तोड़कर

उड़े गगन में मानव का चित !


क्रांति घटे हर घर आँगन में

भय के बादल  छँटे गगन से,

नीरव विमल व्योम का दर्शन

शरद पूर्णिमा हर जीवन में !


9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 30 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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