बरसेगा वह बदली बनकर
उर में प्यास लिए राधा की
कदमों में थिरकन मीरा की,
अंतर्मन में निरा उत्साह
उसकी बांह गहो !
जीवन की आकुलता से भर
प्राणों की व्याकुलता से तर,
लगन जगाए उर में गहरी
नित नव गीत रचो !
बाँटो जो भी पास तुम्हारे
कोई हँसी दबी जो भीतर,
शैशव की वह तुतलाहट भी
खिल कर राह भरो !
झर जाने दो पीले पत्ते
सारे दुःख अपने अंतर से,
तोड़ श्रृंखला जन्मों की हर
दिल की बात कहो !
दीप जलाये प्रीत का सुंदर
पग रखो फिर उसके पथ पर,
गिर जाने दो हर भय, संशय
उसकी चाह करो !
अब वह मन्दिर दूर नहीं है
दूरी या देरी होने पर
किन्तु न करना रोष जरा भी
उसकी राह तको !
बरसेगा वह बदली बनकर
कभी प्रीत की चादर तनकर,
ढक लेगा अस्तित्व् को सारे
उसके संग रहो !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-10-2020 ) को "उन बुज़ुर्गों को कभी दिल से ख़फा मत करना. "(चर्चा अंक - 3846) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह!सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंउम्दा रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनिता जी, नमस्ते👏! आपकी रचना और इसके भाव बहुत सुंदर हैं। यह रचना नवगीत की श्रेणी में रखी जा सकती है। इसमें तुकांतता नहीं होने पर भी गेयता है। नए विम्बों का प्रयोग हुआ है। भावात्मकता उच्च स्तर की है। बहुत बहुत साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
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