लुटा रहा वह धार प्रीत की
जीवन के इस महाविटप पर
दो खग युगों-युगों से बसते,
एक अविचलित सदा प्रफ्फुलित
दूजे के पर डोला करते !
लुटा रहा वह धार प्रीत की
दूजा फल कटु-मृदु खोज रहा,
इक है निःशंक निज गरिमा में
कब दूजे को निज बोध रहा !
उड़ जाता है वह दूर दूर
संघर्षों का अनुयायी है,
नव नीड़ रचे ढूंढ प्रियजन
अकुलाहट हिस्से आयी है !
फिर इक दिन तो ऐसा होगा
बल कोई न पाँखों में रहा,
नजरें फिर मोड़ उसे देखे
जो सदा प्रतीक्षित था तकता !
वह घड़ी अनूठी ही होगी
जब मिलन सुहृद से घट जाये,
विमल असीम स्नेह से पूरित
दो पंछी एक हुए गायें !
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह!बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, सरस
जवाब देंहटाएंगहन भाव
जवाब देंहटाएंउड़ जाता है वह दूर दूर
जवाब देंहटाएंसंघर्षों का अनुयायी है,
नव नीड़ रचे ढूंढ प्रियजन
अकुलाहट हिस्से आयी है !
सामयिक सार्थक भावाभिव्यक्ति