व्यक्त वही अव्यक्त हो सके
हे वाग्देवी ! जगत जननी
वाणी में मधुरिम रस भर दो,
जीवन की शुभ पावनता का
शब्दों से भी परिचय कर दो !
भाषा का उद्गम तुमसे है
नाम-रूप से यह जग रचतीं,
ध्वनि जो गुंजित है कण-कण में
नव अर्थों से सज्जित करतीं !
शिव-शिवानी अ, इ में समाए
क से म पंचम वर्गीय सृष्टि,
हर वर्ण में अर्थ भरे कई
मिले शब्दों से जीवन दृष्टि !
कलम उठे जब भी कागज पर
व्यक्त वही अव्यक्त हो सके,
निर्विचार से जो भी उपजे
भाव वही प्रकटाये मानस !
हे देवी ! पराम्बा माता
कटुता रोष, असत् सब हर ले,
गंगा की निर्मलधारा सम
रचना में करुणा रस भर दे !
बहुत खूबसूरत याचना जगजननी से !! बधाई
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअनीता जी, इतनी खूबसूरती से संकल्प और मां का आशीर्वाद लिया कि -
जवाब देंहटाएंकलम उठे जब भी कागज पर
व्यक्त वही अव्यक्त हो सके,
निर्विचार से जो भी उपजे
भाव वही प्रकटाये मानस !... बहुत सुंंदर
स्वागत व आभार !
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