शुक्रवार, नवंबर 26

हम अनंत तक को छू आते

हम अनंत तक को छू आते

तन पिंजर में मन का पंछी

पांच सीखचों में से ताके,

देह दीये में ज्योति उसकी

दो नयनों से झिलमिल झाँके !


पिंजर में सोना मढ़वाया

पर पंछी प्यासा का प्यासा,

दीपक हीरे मोती वाला

किंतु ज्योति को ढके धुआँ सा !


नीर प्रीत का सुख के दाने

उर का पंछी पाके चहके,

पावन बाती, स्नेह ऊर्जा

हुई प्रज्जवलित ज्योति दहके !  


स्वर्ण-रजत सब माणिक मोती

पल दो पल का साथ निभाते,

मिले प्रेम आनंद ऊर्जा 

हम अनंत तक को छू आते !


बाहर छोड़ें, भीतर मोड़ें

टुकड़ों में मन कभी न तोडें

एक बार पा परम संपदा

सारे जग से नाता जोड़ें !


अनिता निहालानी
२६ नवम्बर २०१०
   

8 टिप्‍पणियां:

  1. सोने चांदी हीरे मोती
    पल दो पल का साथ निभाते,
    प्रीत खुशी पावन ऊर्जा से
    हम अनंत तक को छू आते
    बेहद खूबसूरत रचना... प्रीत की रीत बखूबी छाई है...

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  2. आदरणीय अनिता जी
    नमस्कार !
    आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया खुबसूरत होने के साथ-साथ हृदयस्पर्शी भी है.

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  3. बाहर छोड़ें, भीतर मोड़ें
    टुकड़ों में मन कभी न तोडें
    एक बार पा परम संपदा
    सारे जग से नाता जोड़ें !

    अध्यात्म का सन्देश देती अच्छी रचना ...

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  4. अनीत जी,
    कविता समय चक्र के तेज़ घूमते पहिए का चित्रण है। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।

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  5. अनीता जी ,

    hats off to you...with standing ovation.....

    शब्द नहीं हैं और ...

    "देह पिंजर में पंछी मन का
    पांच सीखचों में से ताके,
    देह दीये में ज्योति उसकी
    दो नयनों से झिलमिल झांके !"

    पांच सींखचे....यानी पांचो ज्ञानेन्द्रियाँ...... वाह

    आपके ब्लॉग पर आकर आत्मा को तृप्ति होती है काफी शंतोई का अनुभव होता है...मैं जनता हूँ ये तभी संभव है जब कोई ठहरा हुआ व्यक्ति, होश में रहने वाला हो उसके सानिध्य में ही ऐसा होता है|

    क्या मैं आप से पूछ सकता हूँ की आपके सदगुरु कौन हैं?

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  6. आप सभी सुधी पाठकों का आभार! इमरान जी आप शायद भूल गए हैं मैंने सदगुरु का नाम बताया था, श्री श्री रविशंकर जी ! वैसे तो सारा जगत ही हमें हर पल सिखा रहा है, सदगुरु एक ही बात कहते हैं नियमित साधना, ध्यान करो, शेष सब अपने आप हो ही रहा है !

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  7. सुन्दर रचना
    भाव और दर्शनमय

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  8. एक बार पा परम संपदा
    सारे जग से नाता जोड़ें !

    अत्यंत शीतल.

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