लगन एक की भीतर गहरी
काँव-काँव कौवे की दिन भर
मगर कोकिला सुबह साँझ ही,
बगुले बन बन डोला करते
राजहंस तिरते कैलास ही !
सारहीन से भरा है यह जग
सार छिपा ढूंढे से मिलता,
सीप हजारों हैं सागर में
किसी किसी में मोती खिलता !
दिल की दौलत वाले हैं कम
लाखों निर्धन रोया करते,
जीवन का जो असली धन है
पल पल उसको खोया करते !
है अरूप भी छिपा रूप में
सत्य वही शेष छाया है,
हाथ न आयेगा अनाम वह
भरमाती जब तक माया है !
राह पकड़ लें यदि एक हम
मंजिल स्वयं घर तक आयेगी,
लगन एक की भीतर गहरी
उसका पता बता जायेगी !
अनिता निहालानी
३ जनवरी २०११
आदरणीय अनिता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
राह पकड़ लें यदि एक हम मंजिल स्वयं घर तक आयेगी, लगन एक की भीतर गहरी उसका पता बता जायेगी !
जवाब देंहटाएंkashh wo raah ham pakar payen....waise ye sach hai, manjil jarur mil jayegi...:)
bahut gahri rachna...kitna pyara bimb apne prayog kiya kauye ki kanw kanw, ..........
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अर्थपूर्ण रचना है......हमेशा की तरह लाजवाब......ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं-
दिल की दौलत वाले हैं कम
लाखों निर्धन रोया करते,
जीवन का जो असली धन है
पल पल उसको खोया करते !
राह पकड़ लें यदि एक हम मंजिल स्वयं घर तक आयेगी, लगन एक की भीतर गहरी उसका पता बता जायेगी !
जवाब देंहटाएं.बहुत सुंदर रचना -
प्रेरणा दाई भी -
"...राह पकड़ लें यदि एक हम मंजिल स्वयं घर तक आयेगी,
जवाब देंहटाएंलगन एक की भीतर गहरी उसका पता बता जायेगी ! "
कविता बहुत ही प्रेरक सन्देश देती है.
सादर